नाटक: संस्कारों का सत्यानाश
दृश्य – 1: (स्थान: जमुई जिला, बिहार – दूबे जी का आंगन)
पात्र:
आयुषी – विवाहित ब्राह्मणी, मगर दिल में प्रेम क्रांति की आग
सचिन दूबे – आयुषी का देवरनुमा भतीजा, संस्कारों का नया पुरोधा
पंडित हरिनाथ दूबे – परिवार के बड़े बुज़ुर्ग, स्वयंभू धर्मरक्षक
बबलू काका – गांव का व्यंग्यकार
🧕 आयुषी (कमर में साड़ी खोंसकर) –
"अब और नहीं! प्रेम की बलि हर बार रिश्तों पर क्यों दी जाए?
जब पिछले साल सगी बहन ने सगे भाई से शादी की, तब कोई त्राहि माम नहीं मचा, तो अब मैं अपने भतीजे को क्यों न वर बनाऊं?"
👦 सचिन (बाल में गंगा जल छिड़कते हुए) –
"चाची... नहीं, अब तो कहो प्राणप्रिय! तुम्हारे लिए मैं समाज से लड़ जाऊंगा।
ब्राह्मण हूँ – घर से भागने में मेरा संस्कार कभी नहीं डगमगाया!"
👴 पंडित हरिनाथ (हाथ में गायत्री मंत्र की माला) –
"हे ब्रह्मा, ये किस युग में जन्म दे दिया तूने!
पहले बेटा बहन से ब्याह रचाए, अब भतीजा चाची से!
कहीं ऐसा न हो कि अगले वर्ष सास और दामाद मिलकर समाज को नया शास्त्र लिख दें!"
🗣️ बबलू काका (हँसते हुए, बीड़ी सुलगाते) –
"अरे पंडित जी, अब तो ब्राह्मणों ने रिश्तों को ओपन बुक टेस्ट बना दिया है –
जो चाहो, वही पढ़ लो!
नैतिकता अब तिलक में छुपा ली गई है और पाप गोत्र के बहाने धो दिया जाता है!"
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दृश्य – 2: (स्थान: गांव की चौपाल – पूरे गांव में चर्चा का तूफान)
👩🦱 गांव की औरत 1 –
"सुनो बहन, अब तो ब्राह्मणों की शादी में निमंत्रण कार्ड पर रिश्ता भी पूछना पड़ेगा –
‘विवाह करने जा रहे वर वधू आपस में कौन लगते हैं?’
उत्तर: जो दिल से चाहे वही!"
👴 बबलू काका (हँसते हुए जोर से) –
"अरे नहीं बहन, अब तो ये लिखो –
‘रक्त संबंध तो केवल खून में होता है, ब्राह्मण संस्कार में नहीं!’"
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दृश्य – 3: (स्थान: घर वापसी के बाद)
👦 सचिन (शादी की माला पहने, गर्व से) –
"देखो समाज! हमने प्रेम की नई परंपरा रची है –
एक घर में ही ससुराल भी है और मायका भी,
पंडिताई भी बची और परंपरा भी नई बनी!"
🧕 आयुषी (सिंदूर सजाए, विजयी मुद्रा में) –
"अब मेरी बेटी नहीं, मेरी सौतन मेरी बेटी बनेगी।
और उसका बाप – मेरा पूर्व पति – अब अकेले पालना सीखेगा।
श्रीमत्भागवत ब्राह्मण संस्करण 2025 में इसे लिखा जाएगा – ‘प्रेम का नया गोत्र!’"
ब्राह्मणों के यहां संस्कार अब WhatsApp स्टेटस बन गए हैं –
जब मन किया बदल लो,
जब गलती पकड़ी गई तो कह दो – “ये तो आत्मा का मिलन है, देह का नहीं!”
जहाँ अन्य समाजों में ऐसे रिश्ते कुकर्म कहे जाते हैं,
वहीं ब्राह्मण समाज ने उन्हें गूढ़ दर्शन कहकर गंगाजल से पवित्र कर दिया।
भाई-बहन से विवाह, चाची-भतीजे का प्रेम,
सब कुछ वैदिक है – बस प्रश्न मत पूछो, क्योंकि प्रश्न करना अपवित्रता है!
यहां चरित्र का अर्थ केवल शुद्ध उच्चारण और पंडिताई पोशाक है –
मन से चाहे जो करो, कर्म तो बस यज्ञ से नपता है।
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